प्रतापगढ़ के कुंडा में चर्चित डीएसपी जियाउल हक हत्याकांड में लखनऊ की सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। इस मामले में कोर्ट ने 10 आरोपियों को दोषी करार दिया है। यह मामला 11 साल पुराना है, जब 2013 में कुंडा के सर्कल अफसर (CO) जियाउल हक की बेरहमी से लाठी-डंडों से पीटने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और उनके करीबी ग्राम प्रधान गुलशन यादव पर आरोप लगे थे, लेकिन बाद में CBI ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी।
शुक्रवार को CBI कोर्ट ने इस हत्याकांड में फूलचंद यादव, पवन यादव, मंजीत यादव, घनश्याम सरोज, राम लखन गौतम, छोटेलाल यादव, राम आसरे, मुन्ना पटेल, शिवराम पासी और जगत बहादुर पाल उर्फ बुल्ले पाल को दोषी ठहराया। इस फैसले ने हत्याकांड के 11 साल बाद न्याय की एक कड़ी को पूरा किया है, हालांकि राजा भैया और गुलशन यादव जैसे प्रमुख आरोपियों को पहले ही क्लीन चिट मिल चुकी है।
जियाउल हक की हत्या के बाद उनकी पत्नी परवीन ने कुंडा थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। इसमें प्रमुख नाम रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का था, जबकि अन्य आरोपियों में गुलशन यादव, हरिओम श्रीवास्तव, रोहित सिंह और संजय सिंह उर्फ गुड्डू शामिल थे। इन पर हत्या (धारा 302), आपराधिक साजिश (धारा 120बी), और कई अन्य गंभीर आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
2012 में जियाउल हक को कुंडा का सर्कल अफसर नियुक्त किया गया था। उनकी तैनाती के बाद से ही उन पर कई दबाव बनाए जा रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जियाउल हक के परिजनों ने खुलासा किया था कि उन पर लगातार राजा भैया के तरफ से दबाव बनाया जा रहा था।
हत्याकांड से कुछ दिन पहले 2 मार्च, 2013 को कुंडा के बलीपुर गांव में ग्राम प्रधान नन्हे सिंह यादव की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद हालात बेकाबू हो गए। प्रधान के समर्थकों ने गांव में हिंसा फैलानी शुरू कर दी, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई। इसी दौरान, CO जियाउल हक अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे, लेकिन गांव वालों ने उन्हें घेर लिया। पहले उन्हें लाठी-डंडों से बुरी तरह पीटा गया और फिर गोली मारकर हत्या कर दी गई।
इस तिहरे हत्याकांड में कुल चार एफआईआर दर्ज की गईं। डीएसपी जियाउल हक की पत्नी परवीन ने भी एक एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने राजा भैया समेत पांच लोगों को आरोपी बनाया। उनके खिलाफ IPC की धारा 302 और अन्य गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
हालांकि, तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। CBI ने अपनी जांच में राजा भैया और उनके करीबी गुलशन यादव को क्लीन चिट दे दी, लेकिन जियाउल हक की पत्नी ने इस क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ अदालत में अपील की, जिसके बाद मामला फिर से कोर्ट में पहुंचा।
इस हत्याकांड की राजनीतिक और सामाजिक गंभीरता को देखते हुए, तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने जांच का जिम्मा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपा। CBI ने 2013 में अपनी जांच पूरी कर ली थी और आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत न मिलने की बात कहते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। जियाउल हक, जो उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के नूनखार टोला जुआफर गांव के रहने वाले थे, की 2012 में कुंडा में सीओ के रूप में नियुक्ति हुई थी। उनकी तैनाती के बाद से ही उन पर विभिन्न प्रकार के दबाव डाले जा रहे थे।
राजा भैया पिछले 30 वर्षों से कुंडा के विधायक हैं और क्षेत्र की राजनीति पर उनका गहरा प्रभाव रहा है। राजा भैया को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं, लेकिन उनका राजनीतिक दबदबा और प्रभाव अब भी कायम है। चाहे जिला पंचायत हो या ब्लॉक प्रमुख, कुंडा में हर प्रमुख पद पर राजा भैया का नियंत्रण रहता है।
इस हत्याकांड ने प्रतापगढ़ और कुंडा की राजनीति को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया, और अब CBI के फैसले के बाद भी लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर राजा भैया पर बार-बार शक क्यों किया गया, जबकि उन्हें पहले ही क्लीन चिट मिल चुकी थी।
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