रामगढ़, झारखंड | आस्था की डुबकी लगाने के लिए महाकुंभ जाना एक धार्मिक मान्यता है, जहां लोग अपने पापों से मुक्ति पाने और पुण्य अर्जित करने की लालसा में संगम में स्नान करते हैं। लेकिन क्या यह पुण्य तब भी फलित होगा जब कोई व्यक्ति अपनी ही मां को घर में बंद कर उसे भूख और पीड़ा से तड़पने के लिए छोड़ दे?
65 वर्षीय संजू देवी के लिए यह कुंभ उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा कष्ट बनकर आया। झारखंड के रामगढ़ की रहने वाली संजू देवी को उनका अपना बेटा अखिलेश घर में ताला लगाकर कुंभ स्नान करने चला गया। पड़ोसियों की मानें तो संजू देवी इतनी भूखी थीं कि उन्होंने प्लास्टिक खाने की कोशिश की। संयोग से कुछ पड़ोसियों को इस बात की भनक लगी और उन्होंने इंसानियत दिखाते हुए पुलिस को सूचना दी। जब पुलिस ने घर का मुख्य दरवाजा तोड़ा तो अंदर का दृश्य देखकर हर किसी की आंखें नम हो गईं।
संजू देवी की हालत इतनी खराब थी कि वह कुछ भी खाने को तैयार थीं। पड़ोसियों ने उन्हें बिस्किट और अन्य खाने-पीने की चीजें दीं, जिससे उनकी भूख थोड़ी शांत हो सके। परंतु इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए। अखिलेश, जो अपनी पत्नी और ससुराल वालों को लेकर कुंभ नहाने गया, अपनी मां को घर में ताले में बंद कर गया था।
परिवार के अन्य सदस्यों से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने भी यही बताया कि बेटा मां को घर में बंद कर चला गया, लेकिन अपने सास-ससुर को अपने साथ ले गया।
क्या अखिलेश को अपनी मां की पीड़ा का अंदाजा नहीं था? क्या उसे अपने पुण्य की चिंता थी लेकिन अपनी मां की भूख की नहीं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के पिछले पाप धुल जाते हैं। लेकिन क्या संजू देवी को तड़पने के लिए छोड़ देने का यह पाप धुल सकेगा? समाज में एक तरफ हम मां को देवी का रूप मानते हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग अपनी ही मां को बेसहारा छोड़कर 'पुण्य' कमाने के लिए निकल पड़ते हैं।
अखिलेश ने यह तर्क दिया कि उसने अपनी मां के लिए खाने का इंतजाम किया था। उसने घर में उनके लिए चूड़ा और पोहा रखा था। लेकिन क्या तीन दिनों तक अकेले बंद कमरे में इन सूखे खाद्य पदार्थों पर कोई जी सकता है? वह भी एक बुजुर्ग महिला, जो पहले से ही बीमार चल रही हो?
पड़ोसियों की तत्परता से पुलिस को समय पर सूचना दी गई और जब पुलिस घर पहुंची, तो उन्होंने दरवाजा तोड़कर संजू देवी को बाहर निकाला। उनकी हालत बेहद नाजुक थी। उनके पैर में घाव थे और उनकी शुगर भी बढ़ी हुई थी। डॉक्टरों के मुताबिक, उन्हें तुरंत इंसुलिन और फ्लूइड दिया गया, ताकि उनकी हालत स्थिर हो सके।
"पेशेंट काफी कमजोर हो चुकी थीं। उनकी शुगर भी ज्यादा थी, जिसे नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन दिया गया। पैर में चोट के कारण सर्जरी डिपार्टमेंट से भी सलाह ली जा रही है," डॉक्टरों ने बताया।
फिलहाल, संजू देवी का अस्पताल में इलाज चल रहा है, और पुलिस ने आश्वासन दिया है कि जब वह बातचीत करने की स्थिति में होंगी, तब उनके बयान के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
धर्म व्यक्ति को संवेदनशील और परोपकारी बनाता है, लेकिन जब वही धर्म परिवार की जिम्मेदारियों को अनदेखा करने लगे, तो उसका उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। अखिलेश के लिए कुंभ नहाने जाना शायद उसके लिए आत्मिक शांति और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग हो सकता था, लेकिन क्या उसकी आत्मा अब चैन से रह पाएगी, यह सोचने योग्य है।
इस घटना से हमें सीख लेनी चाहिए। अगर आप किसी धार्मिक यात्रा पर जा रहे हैं, तो अपने माता-पिता की देखभाल की व्यवस्था पहले सुनिश्चित करें। अगर वे यात्रा करने में असमर्थ हैं, तो किसी अन्य विश्वसनीय व्यक्ति को उनकी देखभाल का जिम्मा सौंपें।
शायर मुनव्वर राणा की पंक्तियाँ इस परिस्थिति में बेहद सटीक बैठती हैं:
"अभी जिंदा है मां मेरी, मुझे कुछ नहीं होगा, मैं जब घर से निकलता हूं, दुआ भी साथ चलती है।"
मां की दुआएं सबसे बड़ा पुण्य हैं। उनका त्याग करके जो पुण्य कमाया जाए, वह सच्चा पुण्य नहीं होता। उम्मीद है कि यह घटना समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश देगी और लोग धर्म व कर्तव्य के बीच संतुलन बनाना सीखेंगे।
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