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बेंगलुरु के आईटी प्रोफेशनल अतुल सुभाष का आत्महत्या : न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

बेंगलुरु के आईटी प्रोफेशनल अतुल सुभाष का आत्महत्या का मामला

ब्रेकिंग न्यूज

  •  10 Dec 2024
  •  शिवंलेख
  •  11 Min Read
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बेंगलुरु: बेंगलुरु के मंजूनाथ लेआउट इलाके में रहने वाले आईटी प्रोफेशनल अतुल सुभाष, जिनकी उम्र मात्र 34 साल थी, ने 9 दिसंबर 2024 को अपने फ्लैट में आत्महत्या कर ली। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के रहने वाले अतुल ने यह कठोर कदम उठाने से पहले डेढ़ घंटे का एक वीडियो रिकॉर्ड किया और 24 पन्नों का एक नोट अपने दोस्तों और एक एनजीओ ग्रुप को ईमेल किया। इस नोट और वीडियो में उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और उन परिस्थितियों का जिक्र किया जिनकी वजह से वह इस कगार पर पहुंचे। उन्होंने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साले अनुराग सिंघानिया और जौनपुर फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक को अपनी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया।

पुलिस को सुबह 6 बजे सूचना मिली कि अतुल अपनी जान दे सकते हैं। पुलिस ने तुरंत उनके फ्लैट का रुख किया, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे तोड़ना पड़ा। अंदर अतुल का पार्थिव शरीर मिला और पास में एक तख्ती पाई गई, जिस पर लिखा था, "Justice is due" यानी "न्याय अभी बाकी है।" पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, अतुल ने अपने इस कदम से पहले अपने दोस्तों को एक संदेश भेजा, जिसमें लिखा था, "यह मैसेज गुडबाय बोलने के लिए है। हो सके तो मेरी और मेरी फैमिली की मदद कीजिएगा।"

अतुल ने अपने नोट में अपनी पत्नी पर झूठे मुकदमे दायर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि तलाक के केस में उनकी पत्नी ने गुजारा भत्ता और अन्य आर्थिक लाभ लेने के लिए उन्हें कानूनी लड़ाई में फंसा दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी पत्नी ने जज रीता कौशिक के साथ मिलकर उन पर दबाव बनाया। अतुल का कहना था कि जज रीता ने उनसे केस सेटल करने के लिए ₹5 लाख की रिश्वत मांगी थी और जब उन्होंने इसे देने से इनकार किया, तो जज ने ₹80,000 प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। उन्होंने यह भी कहा कि जज ने उनकी तनख्वाह का कैलकुलेशन टैक्स काटे बिना किया, जिससे उनकी भरण-पोषण की राशि बढ़ गई।

अतुल ने अपने नोट में लिखा कि सुनवाई के दौरान जज ने उनसे कहा कि "यह केस सेटल कर लो, हम तुम्हारी हेल्प करेंगे।" उन्होंने अपनी पत्नी के उस बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उनकी पत्नी ने उन्हें आत्महत्या करने के लिए उकसाया। उन्होंने बताया कि जज रीता और उनके पेशकार माधव ने उनसे रिश्वत मांगी और पेशकार ने यहां तक कहा कि ₹1 लाख देने पर केस सेटल करवा देंगे।

अतुल ने अपने नोट में अपनी सास निशा सिंघानिया की उस बात का भी जिक्र किया, जब उन्होंने कोर्ट के बाहर कहा, "अरे तुमने अपनी जान अभी तक क्यों नहीं दी? तुम्हारा बाप देगा पैसे। पति के मरने के बाद सब पत्नी का होता है। तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे मां-बाप भी जल्दी मरेंगे, और उसमें भी बहू का हिस्सा होगा। पूरी जिंदगी तुम्हारा परिवार कोर्ट के चक्कर काटेगा।"

अपने आखिरी संदेश में अतुल ने अपने दोस्तों और परिवार के साथ कुछ तस्वीरें साझा कीं और एक कविता लिखी जिसका शीर्षक था "Death Holds No Fear।" इस कविता और उनके संदेश ने उनके गहरे मानसिक संघर्ष को उजागर किया।

अतुल ने अपने मामले में कई गंभीर आरोप और घटनाओं का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ लगातार झूठे केस दर्ज कराए गए और उन्हें न्यायपालिका और उनके ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से शोषित किया गया।

उन्होंने बताया कि कैसे उनके ऊपर एक झूठे केस के तहत 2.5 साल के बच्चे के नाम पर 2 लाख रुपये मासिक मेंटेनेंस की मांग की गई, जिसमें अदालत ने ₹40,000 बच्चे के लिए और ₹40,000 उनकी पत्नी के लिए मंजूर किए। उन्होंने सवाल उठाया कि जौनपुर जैसे इलाके में एक छोटे बच्चे के लिए इतने बड़े खर्च की आवश्यकता क्यों है और यह भी कहा कि जब बच्चा बड़ा होगा तो मेंटेनेंस की राशि कहां तक पहुंचेगी। अतुल ने बताया कि उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया, जो एक बड़ी कंपनी एक्सेंचर में कार्यरत हैं, और उनके ससुराल पक्ष ने झूठे केस दर्ज कराए और उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी।

उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी सास, उनके साले और अन्य लोगों ने उनकी जिंदगी को बर्बाद करने की कोशिश की। कोर्ट में उनके साथ हुई घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जज रीता कौशिक ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और उनके साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अदालत में उनकी सास और जज द्वारा उनका उपहास किया गया और उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाया गया।

अतुल ने यह भी बताया कि उनकी पत्नी ने फर्जी आरोप लगाए, जिसमें अप्राकृतिक संबंध और हत्या की साजिश जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। लेकिन जब क्रॉस-एग्जामिनेशन हुआ तो इन आरोपों को उनकी पत्नी ने खुद झूठा बताया। उन्होंने कहा कि मृतक व्यक्ति, जिसके लिए यह आरोप लगाया गया था, पिछले 10 वर्षों से एम्स में इलाज करवा रहा था। अतुल ने कहा कि इस तरह के फर्जी केस और मानसिक प्रताड़ना से उनका जीवन बर्बाद हो गया।

उन्होंने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और बताया कि कैसे फास्ट-ट्रैक मामलों की संख्या बढ़ाकर उन पर अनुचित दबाव बनाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता की कमी है और वीडियो रिकॉर्डिंग को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। उन्होंने जजों की अनुपस्थिति और कामकाज की धीमी गति पर सवाल उठाए और सरकार से मांग की कि न्यायपालिका और सरकारी कर्मचारियों की सख्त निगरानी हो।

अतुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कानून मंत्रालय से अपील की कि टैक्सपेयर के पैसे का सही उपयोग हो और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और पक्षपात खत्म किया जाए। उन्होंने जज रीता कौशिक को सस्पेंड करने और मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि निकिता सिंघानिया को एक्सेंचर से सस्पेंड किया जाए, जब तक कि जांच पूरी न हो।

अतुल के इस पूरे मामले ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं और यह दिखाया है कि कैसे कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है। उन्होंने यह मांग की कि उनकी आपबीती की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए ताकि भविष्य में किसी और के साथ ऐसा न हो।

यह मामला न केवल एक व्यक्ति की दुखद मौत की कहानी है, बल्कि न्यायपालिका और पारिवारिक विवादों से जुड़े गंभीर मुद्दों को भी उजागर करता है। अतुल के इन आरोपों पर उनकी पत्नी और उनके परिवार का पक्ष अभी आना बाकी है, लेकिन इससे पहले जज रीता कौशिक और उनके कार्यप्रणाली पर उठे सवालों का जवाब देना न्यायपालिका की विश्वसनीयता के लिए बेहद जरूरी है। अतुल की यह मौत भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण से एक ऐसी घटना है जो हमारे समाज और न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है।

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