प्रतापगढ़ : उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा एक बार फिर सवालों के घेरे में है। प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज थाना क्षेत्र में 21 वर्षीय दलित युवती कोमल सरोज के साथ न केवल बलात्कार किया गया, बल्कि बर्बरता से उसकी हत्या भी कर दी गई। यही नहीं, परिवार को उसकी मौत की सूचना तक ठीक से नहीं दी गई और शव को लावारिस हालत में फेंक दिया गया। इस जघन्य अपराध के बाद से इलाके में तनाव का माहौल है, और पीड़िता का परिवार न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है।
नर्स के रूप में कार्यरत थी कोमल सरोज
कोमल सरोज, जो एक मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में पिछले चार वर्षों से नर्स के रूप में काम कर रही थी, अपने परिवार की आर्थिक रीढ़ थी। उसके पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी, और घर में एक दिव्यांग मां और छोटी बहन उसकी कमाई पर निर्भर थे। इस बेटी की मेहनत और संघर्ष को बेरहमी से कुचल दिया गया।
परिवार को नहीं दी गई मौत की सूचना
गुरुवार की शाम करीब 6:30 बजे कोमल रोज की तरह साइकिल से अस्पताल के लिए निकली। रात 8:30 बजे अस्पताल से उसकी मां को एक फोन आता है, जिसमें कहा जाता है कि ‘तुम्हारी बेटी मर गई है’। इस हृदयविदारक सूचना को सुनते ही मां अस्पताल पहुंचती हैं, लेकिन वहां उन्हें अंदर नहीं जाने दिया जाता। अस्पताल के कर्मचारी उन्हें रोक लेते हैं और बेटी की मौत का कारण भी नहीं बताते।
मां को कोमल का शव तक देखने नहीं दिया गया और उन्हें वापस भेज दिया गया। कुछ देर बाद, जब वह घर लौटीं, तो एक एंबुलेंस उनके घर के बाहर आकर रुकती है। इस एंबुलेंस से कोमल का शव बाहर फेंक दिया जाता है। स्थानीय लोगों ने जब यह देखा तो वे आक्रोशित हो गए और शव फेंककर भाग रहे लोगों को पकड़ लिया। आरोपियों में अस्पताल के डॉक्टर और कुछ कर्मचारी शामिल थे।
नग्न अवस्था में मिला शव, शरीर पर चोटों के निशान
मां का कहना है कि कोमल जब घर से निकली थी, तो सूट-सलवार पहने हुए थी, लेकिन शव मिलने पर उसके शरीर का निचला हिस्सा निर्वस्त्र था। उसके शरीर पर कई जगह चोटों के गहरे निशान थे, जो यह दर्शाते हैं कि उसके साथ किस हद तक बर्बरता हुई।
घटना के तुरंत बाद, मां और स्थानीय लोग रानीगंज थाना पहुंचे और अस्पताल के छह कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। आरोपियों में डॉक्टर अमित पांडे, सुनील कुमार, विद्यासागर, शाहबाज, अस्पताल मालिक और एक दाई मनोरमा देवी शामिल हैं।
अस्पताल में चल रहा था गंदा खेल, कोमल बनी शिकार
इस पूरे मामले में एक और चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ जब कोमल की सहकर्मी ने बताया कि अस्पताल में लंबे समय से लड़कियों के साथ गलत काम किया जा रहा था। डॉक्टर रात में लड़कियों को बुलाते थे और उनके साथ अनैतिक हरकतें करते थे। कोमल को जब इस बारे में पता चला, तो उसने इसका विरोध किया और शिकायत दर्ज करवाने की बात कही। यह बात आरोपियों तक भी पहुंच गई।
कोमल की सहेली ने बताया कि उसने कोमल से नौकरी छोड़ने के लिए कहा था, लेकिन कोमल ने परिवार की जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए काम जारी रखने का फैसला किया। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि सच्चाई उजागर करने की सजा उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी।
गुस्साए लोगों का प्रदर्शन, पुलिस पर हुआ हमला
घटना के बाद इलाके में जबरदस्त आक्रोश देखने को मिला। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो करीब 250 लोग कोमल के शव के साथ अस्पताल पहुंचे और प्रदर्शन करने लगे। गुस्से में लोगों ने अस्पताल में तोड़फोड़ की और नारेबाजी की।
सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन भीड़ को शांत नहीं कर सकी। स्थिति बिगड़ने लगी और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव कर दिया, जिससे करीब 12 पुलिसकर्मी घायल हो गए। सीओ के सिर पर गंभीर चोट आई। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया और प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा।
परिवार न्याय के लिए डटा, शव नहीं सौंपने पर अड़ा
कोमल का शव अभी भी अस्पताल के बाहर रखा हुआ था। परिजन और स्थानीय लोग इसे पुलिस को सौंपने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें डर था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेरफेर किया जाएगा और आरोपियों को बचाने की कोशिश होगी। पुलिस लगातार शव को कब्जे में लेने का प्रयास कर रही थी, लेकिन परिजन अड़े रहे कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा, वे शव नहीं सौंपेंगे।
इस घटना पर राजनीति भी शुरू हो गई। समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक आर. के. वर्मा मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिवार से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि यह घटना बेहद शर्मनाक है और इसमें शामिल सभी दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सवाल किया कि आखिर उत्तर प्रदेश में महिलाएं और दलित सुरक्षित क्यों नहीं हैं?
सपा के मीडिया सेल ने भी इस मामले पर ट्वीट कर सरकार पर हमला बोला और कहा कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं और सरकार सिर्फ मूकदर्शक बनी हुई है।
महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल
यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ हफ्तों में दलित महिलाओं पर अत्याचार के कई मामले सामने आ चुके हैं। सवाल यह उठता है कि सरकार आखिर कब तक इन मामलों पर आंखें मूंदे रहेगी? क्या महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों को और सख्त करने की जरूरत है, या फिर प्रशासन को अधिक संवेदनशील बनाए जाने की आवश्यकता है?
इस घटना के बाद पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर क्यों अभी तक किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई? अगर कोई आम नागरिक होता, तो क्या इतनी देरी होती?
योगी सरकार अपराधियों पर बुलडोजर चलाने के लिए जानी जाती है, लेकिन इस मामले में अब तक कोई सख्त कार्रवाई देखने को नहीं मिली है। पुलिस ने परिवार को न्याय दिलाने के बजाय प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाई और उन्हें खदेड़ा। क्या यही है ‘सबका साथ, सबका विकास’ का असली चेहरा?
क्या मिलेगा कोमल को न्याय?
कोमल सरोज की हत्या सिर्फ एक लड़की की हत्या नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि महिलाएं अब भी सुरक्षित नहीं हैं। परिजन अभी भी अस्पताल के बाहर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन कोमल के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए तत्परता दिखाएगा, या यह मामला भी बाकी घटनाओं की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
उत्तर प्रदेश की सरकार और पुलिस प्रशासन को अब जवाब देना होगा। कोमल का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए।
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