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डिजिटल युग में बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा: चुनौतियाँ, समाधान और कानूनी ढांचे की आवश्यकता

डिजिटल युग में बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा: चुनौतियाँ, समाधान और कानूनी ढांचे की आवश्यकता

लाइफ स्टाइल

  •  27 Sep 2024
  •  शिवंलेख
  •  10 Min Read
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  •  3

स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप, और गेमिंग कंसोल जैसे उपकरण बच्चों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं, और इंटरनेट उनकी शैक्षिक और मनोरंजन जरूरतों का प्रमुख साधन है। हालांकि, इस डिजिटल विकास के साथ कई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं, जैसे साइबरबुलिंग, ऑनलाइन शोषण, और अनुचित सामग्री की पहुंच। बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें कानूनी ढांचे, माता-पिता का मार्गदर्शन और तकनीकी समाधान शामिल हों।

इंटरनेट ने बच्चों को सीखने और खुद को व्यक्त करने के कई नए अवसर प्रदान किए हैं, लेकिन इसके साथ कई खतरों का सामना भी करना पड़ता है। साइबरबुलिंग, अनुचित सामग्री तक पहुंच, और गोपनीयता का उल्लंघन बच्चों के लिए सबसे प्रमुख समस्याएं बन गई हैं। विशेष रूप से, साइबरबुलिंग बच्चों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकती है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में तीन में से एक बच्चा साइबरबुलिंग का शिकार हुआ है, जिसके उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव देखे गए हैं।

भारत जैसे देशों में, डिजिटल विभाजन का एक और पहलू उभर कर सामने आता है। केवल 40% लोग ही बुनियादी डिजिटल कौशल रखते हैं, जिससे न केवल बच्चों को डिजिटल खतरों से बचाना कठिन हो जाता है, बल्कि उन्हें उचित डिजिटल सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां बच्चों के पास अपनी व्यक्तिगत डिवाइस नहीं होती, वे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ डिवाइस साझा करते हैं। यह स्थिति माता-पिता के लिए बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर निगरानी रखना और उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल बना देती है। इसके अलावा, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर अनुचित सामग्री की आसान उपलब्धता ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है।

बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। इसमें कानूनी ढांचे, तकनीकी समाधानों और माता-पिता की भूमिका को शामिल करना होगा। सबसे पहले, माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे इंटरनेट पर किस प्रकार की सामग्री देख रहे हैं और किन लोगों के संपर्क में हैं। इसके लिए डिजिटल साक्षरता महत्वपूर्ण है, जो बच्चों और उनके अभिभावकों को संभावित ऑनलाइन खतरों को समझने और उनसे बचने में मदद कर सकती है। भारत की डिजिटल इंडिया पहल इस दिशा में काम कर रही है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

तकनीकी प्लेटफार्मों की भूमिका भी अहम है। तकनीकी कंपनियों को मजबूत अभिभावकीय नियंत्रण सुविधाएँ विकसित करनी चाहिए जो बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी करने में सहायक हों। उदाहरण के लिए, यूट्यूब किड्स जैसे प्लेटफार्मों पर अभिभावकीय नियंत्रण सुविधाएँ हैं, जो माता-पिता को बच्चों के स्क्रीन टाइम को मैनेज करने और अनुचित सामग्री तक उनकी पहुंच को रोकने में मदद करती हैं। इसी प्रकार के और अधिक प्लेटफार्मों और सुविधाओं की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को सुरक्षित डिजिटल अनुभव मिल सके।

भारत और अन्य देशों में सरकारें बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर कई प्रकार के कदम उठा रही हैं। उदाहरण के तौर पर, यूके के आयु-उपयुक्त डिज़ाइन कोड (Age-Appropriate Design Code) ने बच्चों के लिए सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए प्लेटफार्मों को आवश्यक सुरक्षा उपायों को लागू करने पर जोर दिया है। भारत में भी इसी प्रकार के दिशा-निर्देश लागू करने की आवश्यकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि तकनीकी प्लेटफॉर्म बच्चों के लिए अलग-अलग आयु समूहों के अनुसार सामग्री और सुरक्षा उपायों को संशोधित करें।

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी ऑनलाइन सुरक्षा और डिजिटल जिम्मेदारी के प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं। स्कूलों को बच्चों को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रहने के तरीके सिखाने के लिए अपने पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता को शामिल करना चाहिए। शिक्षा मंत्रालय और तकनीकी प्लेटफॉर्म के बीच सहयोग से बच्चों की डिजिटल सुरक्षा सुनिश्चित करने के व्यापक उपाय किए जा सकते हैं।

बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आयु सत्यापन एक और महत्वपूर्ण पहलू है। हालांकि, पहचान से संबंधित दस्तावेजों की आवश्यकता वाले आयु सत्यापन सिस्टम गोपनीयता से संबंधित मुद्दों को जन्म देते हैं। अकसर ये सिस्टम जरूरत से ज्यादा डेटा एकत्र करते हैं, जो बच्चों की गोपनीयता का उल्लंघन कर सकता है। भारत में, आधार कार्ड का उपयोग आयु सत्यापन के लिए किया जा रहा है, लेकिन इससे डेटा दुरुपयोग की चिंताएं भी बढ़ी हैं। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, सरकार को एक सुरक्षित और गोपनीयता-सम्मत आयु सत्यापन प्रणाली विकसित करनी चाहिए।

बच्चों के डिजिटल अधिकारों की रक्षा करना भी महत्वपूर्ण है। इंटरनेट तक उनकी पहुंच को पूरी तरह से रोकना या सीमित करना उनके सीखने और विकास को बाधित कर सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म बच्चों की कौशल वृद्धि और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, इन प्लेटफॉर्मों तक बच्चों की पहुंच सुनिश्चित करना और साथ ही उन्हें सुरक्षित रखना आवश्यक है। शिक्षा का अधिकार केवल स्कूलों तक सीमित नहीं होना चाहिए; इसमें डिजिटल शिक्षा और सुरक्षा का भी समावेश होना चाहिए।

डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचे, तकनीकी समाधानों और माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। बच्चों की डिजिटल सुरक्षा को सुनिश्चित करना केवल सरकार का काम नहीं है; इसमें तकनीकी कंपनियों, अभिभावकों, और समाज के अन्य सदस्यों की भी अहम भूमिका होती है। इंटरनेट बच्चों के लिए सीखने का एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है, बशर्ते कि इसे सुरक्षित और जिम्मेदार तरीके से उपयोग किया जाए। हमें एक ऐसा डिजिटल वातावरण बनाने की दिशा में काम करना चाहिए, जिसमें बच्चे सुरक्षित रहें, और साथ ही उनके विकास के अवसर भी न खोएं।

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