महाकुंभ 2025 : महाकुंभ भारत की सनातन संस्कृति और आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा उत्सव है, जिसमें पूरे विश्व से करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति, सामाजिक समरसता और मानवता की अखंडता को भी उजागर करता है। नंद गिरी जी महाराज ने महाकुंभ के महत्व और सनातन धर्म के संदेश को साझा करते हुए इसे भारतीय संस्कृति का चिरस्थायी आधार बताया।
नंद गिरी जी महाराज ने महाकुंभ के मंच से कहा कि सनातन संस्कृति आदिकाल से अस्तित्व में है। यह संस्कृति ईश्वर की सत्ता को सभी रूपों में स्वीकार करती है और "वसुधैव कुटुंबकम्" के विचार को सार्थक करती है। सनातन धर्म का मुख्य उद्देश्य मानवता और समस्त प्राणियों के सुख-शांति और कल्याण की कामना करना है। "सर्वे भवन्तु सुखिनः" और "लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु" जैसे मंत्रों के माध्यम से सनातन धर्म पूरे विश्व में एकता और समरसता का संदेश देता है।
महाकुंभ का आयोजन भारतीय संस्कृति की विराटता, उदारता और वैभव का प्रतीक है। यहां न केवल नागा साधु, योगी, तपस्वी और संत महात्मा आते हैं, बल्कि गांव-गली से लेकर महानगरों तक के सामान्य व्यक्ति भी इस पर्व में अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ सम्मिलित होते हैं। यूनेस्को ने महाकुंभ को मानवता की अमूर्त धरोहर घोषित किया है, जो इसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन बनाता है।
इस बार महाकुंभ में हरित, स्वस्थ और डिजिटल कुंभ की अवधारणा को अपनाया गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह कुंभ एक अनुकरणीय आयोजन बन रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए नंद गिरी जी महाराज ने कहा कि यह कुंभ न केवल धार्मिक बल्कि पर्यावरणीय और तकनीकी दृष्टिकोण से भी एक नया आयाम स्थापित करेगा।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का महापर्व है। यहां जाति, वर्ग और संप्रदाय की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं, और सभी श्रद्धालु एक समान रूप से संगम पर स्नान और ध्यान के लिए आते हैं। महाराज जी ने कहा कि महाकुंभ हमें यह सिखाता है कि हमारी असली पहचान हमारी मानवता है और हमें जाति और धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर एकता और समरसता के मार्ग पर चलना चाहिए।
नदियों के किनारे आयोजित महाकुंभ में इस बार गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान के लिए करोड़ों श्रद्धालु जुटेंगे। नदियों की निर्मलता और पवित्रता बनाए रखने के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए हरित कुंभ की पहल की गई है।
नंद गिरी जी महाराज ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति विश्व को परिवार मानती है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति इसे केवल एक बाजार के रूप में देखती है। सनातन धर्म हमें यह सिखाता है कि प्रकृति, पशु-पक्षी, नदियां और पर्वत, सभी हमारे परिवार का हिस्सा हैं। "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" के सिद्धांत के तहत यह संस्कृति हर जीव और वस्तु में परमात्मा को देखने की प्रेरणा देती है।
महाराज जी ने महाकुंभ को एकता और सामाजिक समरसता का संदेशवाहक बताते हुए कहा कि यह पर्व भारत की अनोखी विविधता में एकता को प्रकट करता है। यहां हर वर्ग, पंथ और समुदाय के लोग एक साथ आकर अपने विश्वास और श्रद्धा को प्रकट करते हैं। महाकुंभ भारत की सामूहिक चेतना का प्रतीक है, जहां भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पहलू एक साथ दिखाई देते हैं।
नंद गिरी जी महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक युगपुरुष बताते हुए उनके नेतृत्व की सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुशल प्रबंधन क्षमता के कारण इस बार का महाकुंभ एक दिव्य और भव्य आयोजन बन रहा है।
महाकुंभ में पर्यावरण संकट को ध्यान में रखते हुए जलाशयों की स्वच्छता, पेड़ों के संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। महाराज जी ने लोगों से अपील की कि वे गांव-गली और मोहल्लों में अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं और जल संसाधनों की स्वच्छता का ध्यान रखें।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भारतीय संस्कृति की अखंडता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। महाराज जी ने कहा कि यदि हम जातियों और वर्गों में बंटे बिना एक रहेंगे, तो हम एक शक्तिशाली और सामर्थ्यवान समाज का निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने सभी भारतीयों से आग्रह किया कि वे अपनी जातियों और पंथों के बावजूद हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति के तहत एकजुट रहें।
नंद गिरी जी महाराज ने महाकुंभ को भारत के गौरव का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह पर्व विश्व को यह संदेश देता है कि मानवता की शक्ति एकता में निहित है। "वन वर्ल्ड, वन फ्यूचर, वन फैमिली" के विचार को अपनाते हुए उन्होंने कहा कि महाकुंभ पूरे विश्व को एक परिवार मानने की भारतीय संस्कृति की अवधारणा को साकार करता है।
महाकुंभ के माध्यम से भारत ने बार-बार यह साबित किया है कि वह केवल भौतिक प्रगति ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि में भी विश्व का नेतृत्व कर सकता है। महाराज जी ने अंत में सभी श्रद्धालुओं को महाकुंभ में शामिल होने और भारतीय संस्कृति की इस अद्वितीय धरोहर को देखने और अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया।
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